Posted on 24-06-2021 by Admin
आज के टाइम में सिविल न्यायालय में cheque bounce case काफी चल रहे है . cheque bounce होने का main कारण है की cheque के पैसे अकाउंट में न होने के कारण पेमेंट न होना . जिस से नुकसान होता है . अगर आप cheque bounce case से बचना चाहते है तो हम आप को ट्रिक बता रहे है. banking awareness banking gk for punjab cooperative bank IBPS exam
आप अपने अकाउंट में उतनी अम्मौंत जरुर रखे जितनी अमाउंट का आप ने चेक दिया है
चेक आप तब ही दे जब आप के अकाउंट में पैसे हो
पैसे न होने के कारण आप चेक न दे
सिविल न्यायालय में दायर कर सकते है अगर आप का cheque bounce हो जाता है आप निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत सिविल कोर्ट में केस फाइल कर सकते हैं. इसके तहत आरोपी को 2 साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है. जुर्माने की राशि चेक की राशि का दोगुना हो सकती है.i
अगर आप का cheque bounce हो जाता है तो आप सिविल न्यायालय में अपने बचाव में यह पक्ष रख सकता है कि चेक लेने वाले ने उसे जब पैसे देये थे उसका सोर्स क्या था?
सोर्स साबित नहीं होने पर चेक देने वाले से किसी प्रकार की वसूली नहीं की जाए। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनाया है।
आपको धारा 138 के तहत cheque bounce case में जमानत लेने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि यह मुख्य रूप से एक सिविल कार्यवाही है और न कि आपराधिक अगर आप cheque bounce case में सही हो तो आप का कोई सजा नहीं देगा। यद्यपि आप कारावास के लिए उत्तरदायी हो सकते है अगर मामले का निर्णय आप के खिलाफ लिया गया। हालांकि फिर भी अपराध समझौता करने योग्य है। मैं आपको सलाह देता हूं कि आप केस की सुनवाई के लिए जाएं और केस लड़े। ये जमानती अपराध है इसमें कोर्ट से ही जमानत मिल जाती है | कोई परेशानी नही आती है |
आजकल देश में किसी व्यक्ति को फ़साने या कोई नुक्सान पहुंचाने के कानून का सहारा लेना बहुत ही आम बात बन चुका है, जिसमें एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से बदला लेने के लिए उसे किसी झूठे मामले में फसा देता है,
आपको किसी झूठे मामले से बचाने में आपकी मदद कर सकता है डाक्यूमेंट्स को केस में अवश्य ही लगाएं
वह रसीद जिसमें आपने अपने ऋण का भुगतान किया था।
चेक को बैंक में डालने के समय भरी जाने वाली स्लिप
चेक की बाउंस होने वाली स्लिप (बैंक की स्टाम्प व सिग्नेचर के साथ)
लीगल नोटिस तथा उसकी पोस्टल स्लिप सबूत के लिए कि आपका नोटिस दोषी पार्टी को मिला था, यदि नोटिस नहीं मिला तो उस के कारण क्या थे
न्यायालय ने चेक बाउंस का मामला झूठा मामले दायर करवाने के आरोप में परिवादी के ही खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया है। ये जमानती अपराध है इसमें कोर्ट से ही जमानत मिल जाती है | कोई परेशानी नही आती है |
चेक के बाउंस होने के बाद आपके पास सामने वाले से लड़ने के लिए तीन क़ानूनी आधार रह जाते है (1) चेक बाउंस N.I.138 एक्ट का केस फ़ाइल् कर सकते है (2) आप दीवानी मुकदमा यानि सिविल केस आर्डर 37 C.P.C. में फ़ाइल् कर सकते है (3) आप पुलिस में शिकायत कर के धारा 420 में भी फ. आई. आर. करवा सकते है | आइये एन तीनो पर खुल कर चर्चा करे की हम कैसे इनका प्रयोग कर सकते है |
इसके लिए, भुगतानकर्ता को बैंक से “चेक रिटर्न मेमो” प्राप्त होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर एक नोटिस भेजना चाहिए। नोटिस में कहा जाना चाहिए कि चेक राशि का भुगतान प्राप्तकर्ता को नोटिस प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए।
आदेशानुसार चेक बाउंस होने पर फरियादी उस शहर की कोर्ट में केस नहीं लगा सकता जहां की बैंक का चेक आरोपी ने उसे नहीं दिया। केस वहीं लग सकता है, जहां की बैंक का चेक आरोपी ने दिया है। याद रहे अब तक किसी भी शहर के व्यक्ति द्वारा दिया चेक बाउंस होने पर फरियादी अपने शहर में केस लगाता था। जिस शहर की बैंक का चेक बाउंस, वहीं लगेगा केस,
पुलिस चाहे तो धारा 420 IPC में फ. आई. आर. कर सकती है पर करती नही है अगर कोर्ट से फ. आई. आर. के आर्डर हो जाये तो फ. आई. आर. रजिस्टर्ड करके दोषी को जेल में डाल सकती है तथा पुलिस कोर्ट के वारंट आर्डर पर भी दोषी को गिरफ्तार करती है| अगर आरोपी पर कई लोगो के चेक के केस है या फिर चेक के साथ कोई और भी धोखा धडी की है तो धारा 420 IPC में फ. आई. आर. जरुर करवाये
चेक बाउंस केस में शिकायतकर्ता आमतौर पर शिकायत अदालत में , पुलिस को कर सकता है . आप पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से भी मामला दर्ज करवा सकते है ध्यान रखे की महत्वपूर्ण बात यह है कि शिकायतकर्ता के लिए मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होना और शपथ के तहत जांच करना अनिवार्य है।
आप के पास डाक्यूमेंट्स होने जरुर्री है
मूल चेक और रिटर्न मेमो, नोटिस की कॉपी और मूल डाक रसीदें, साक्ष्य हलफनामा।
आदेशानुसार चेक बाउंस होने पर फरियादी उस शहर की कोर्ट में केस नहीं लगा सकता जहां की बैंक का चेक आरोपी ने उसे नहीं दिया
सिविल कोर्ट में मुकदमा: अगर ऐसा नहीं होता तो यह मामला कानूनी प्रक्रिया में ले जा सकते हैं. इसके लिए चेक देने वाले के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत सिविल कोर्ट में केस दर्ज कर सकते हैं.